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Monday 30 June 2014

समाचार के प्रकार

बदलती दुनिया, बदलते सामाजिक परिदृश्य, बदलते बाजार, बाजार के आधार पर बदलते शैक्षिक-सांस्कृतिक परिवेश और सूचनाओं के अम्बार ने समाचारों को कईकई प्रकार दे डाले हैं। कभी उंगलियों पर गिन लिये जाने वाले समाचार के प्रकारों को अब पूरी तरह गिना पाना संभव नहीं है। एक बहुत बड़ा सच यह है कि इस समय सूचनाओं का एक बहुत बड़ा बाजार विकसित हो चुका है। इस नयेनवेले बाजार में समाचार उत्पाद का रूप लेते जा रहे हैं। समाचार पत्र हों या चैनल, हर ओर समाचारों को ब्रांडेड उत्पाद बनाकर परोसने की कवायद शुरू हो चुकी है। खास और एक्सक्लूसिव बताकर समाचार को पाठकों या दर्शकों तक पहुंचाने की होड़ ठीक उसी तरह है, जिस तरह किसी कम्पनी द्वारा अपने उत्पाद को अधिक से अधिक उपभोक्ताओं तक पहुंचाना।
समाचारों का मार्केट तैयार करने की बात बड़ी तेजी से सामने रही है। कुछ नया करके आगे निकल जाने की होड़ में लगभग सभी समाचार पत्र और चैनल शामिल हैं। यही वजह है कि बीसवीं सदी के अंतिम दशक से समाचारों के प्रकारों की फेहरिस्त लगातार बढती नजर रही है। इंटरनेट के प्रयोग ने इस फेहरिस्त को लम्बा करने और सम्यक अद्यतन जानकारियों से लैस करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। सच तो यह है कि इंटरनेट ने भारत के समाचार पत्रों को विश्व स्तर के समाचार पत्रों की श्रेणी में ला खड़ा किया है। सर्वाधिक गुणात्मक सुधार विकास हिन्दी अन्य क्षेत्रीय भाषाओं में देखने को मिला है।
समाचार के कई प्रकार हैं। घटना के महत्व, अपेक्षितता, अनपेक्षितता, विषय क्षेत्र, समाचार का महत्व, संपादन हेतु प्राप्त समाचार, प्रकाशन स्थान, समाचार प्रस्तुत करने का ढंग आदि कई आधारों पर समाचारों का विभाजन, महत्ता गौणता का अंकन किया जाता है। तथा उसके आधार पर समाचारों का प्रकाशन कर उसे पूर्ण, महत्वपूर्ण सामयिक बनाया जा सकता है।
. प्रकाशन स्थान के आधार पर
. स्थानीय समाचार
गांव या कस्बे, जहां से समाचार पत्र का प्रकाशन होता हो, विद्यालय या अस्पताल की इमारत का निर्माण, स्थानीय दंगे, दो गुटों में संघर्ष जैसे स्थानीय समाचार, जो कि स्थानीय महत्व और क्षेत्रीय समाचार पत्रों की लोकप्रियता को बढाने में सहायक होने के कारण स्थानीय समाचार पत्रों में विशेष स्थान पाते हों, स्थानीय समाचार कहलाते हैं। समाचार यदि लोगों से सीधे जुड़े होते हैं तो उसकी प्रसार प्रचार की स्थिति बहुत अधिक मजबूत हो जाती है। इधर कई समाचार पत्रों ने अपने स्थानीय संस्करण प्रकाशित करने शुरू कर दिये हैं। ऐसे में दो से सात पृष्ठ स्थानीय समाचारों से भरे जा रहे हैं। यह कवायद स्थानीय बाजार में अपनी पैठ बनाने की भी है, ताकि स्थानीय छोटेछोटे विज्ञापन भी आसानी से प्राप्त किये जा सकें। स्थानीय समाचार में जन सहभागिता भी सुनिश्चित की जाती है, ताकि समाचार पत्र को लेग अपनी ही आवाज का प्रतिरूप मान सकें। कई समाचार पत्रों ने अपने स्थानीय कार्यालय या ब्यूरो स्थापित कर दिये हैं और वहां संवाददाताओं की कई स्तरों वाली फौज भी तैनात कर रखी है।
समाचार चैनलों में भी स्थानीयता को महत्व दिया जाने लगा है। कई समाचार चैनल समाचार पत्रों की ही तरह अपने समाचारों को स्थानीय स्तर पर तैयार करके प्रसारित कर रहे हैं। वे छोटेछोटे आयोजन या घटनाक्रम, जो समाचारों के राष्ट्रीय चैनल पर बमुश्किल स्थान पाते थे, अब सरलता से टीवी स्क्रीन पर प्रसारित होते दिख जाते हैं। कुछ शहरों में स्थानीय केबल समाचार चैनल भी शुरु हो गये हैं, और बहुत लोकप्रिय सिद्ध हो रहे हैं। यह कहा जा सकता है कि आने वाले दिनों में स्थानीय स्तर पर समाचार चैनल संचालित करने की होड़ मचने वाली है।
. प्रादेशिक या क्षेत्रीय समाचार
जैसेजैसे समाचार पत्र चैनलों का दायरा बढता जा रहा है, वैसेवैसे प्रादेशिक क्षेत्रीय समाचारों का महत्व भी बढ रहा है। एक समय था कि समाचार पत्रों के राष्ट्रीय संस्करण ही प्रकाशित हुआ करते थे। धीरेधीरे प्रांतीय संस्करण निकलने लगे और अब क्षेत्रीय स्थानीय संस्करण निकाले जा रहे हैं।
किसी प्रदेश के समाचार पत्रों पर ध्यान दें तो उसके मुख्य पृष्ठ पर प्रांतीय समाचारों की अधिकता रहती है। प्रांतीय समाचारों के लिये प्रदेश शीर्षक से पृष्ठ भी प्रकाशित किये जाते हैं। इसी तरह से पश्चिमांचल, पूर्वांचल या फिर बुंदेलभूमि शीर्षक से पृष्ठ तैयार करके क्षेत्रीय समाचारों को प्रकाशित किया जाने लगा है। प्रदेश क्षेत्रीय स्तर के ऐसे समाचारों को प्रमुखता से प्रकाशित करना आवश्यक होता है, जो उस प्रदेश क्षेत्र की अधिसंख्य जनता को प्रभावित करते हों। कुछ समाचार चैनलों ने भी क्षेत्रीय प्रादेशिक समाचारों को अलग से प्रस्तुत करना शुरू कर दिया है।
. राष्ट्रीय समाचार
देश में हो रहे आम चुनाव, रेल या विमान दुर्घटना, प्राकृतिक आपदाबाढ, अकाल, महामारी, भूकम्प आदिरेल बजट, वित्तीय बजट से सम्बंधित समाचार, जिनका प्रभाव अखिल देशीय हो, राष्ट्रीय समाचार कहलाते हैं। राष्ट्रीय समाचार स्थानीय और प्रांतीय समाचार पत्रों में भी विशेष स्थान पाते हैं।
राष्ट्रीय स्तर पर घट रही हर घटनादुर्घटना समाचार पत्रों चैनलों पर महत्वपूर्ण स्थान पाती है। देश के दूर-दराज इलाके में रहने वाला सामान्य सा आदमी भी यह जानना चाहता है कि राष्ट्रीय राजनीति कौन सी करवट ले रही है, केन्द्र सरकार का कौन सा फैसला उसके जीवन को प्रभावित करने जा रहा है, देश के किसी भी कोने में घटने वाली हर वह घटना जो उसके जैसे करोड़ों को हिलाकर रख देगी या उसके जैसे करोड़ों लोगों की जानकारी में आना जरूरी है।
सच यह है कि इलेक्ट्रानिक मीडिया के प्रचारप्रसार ने लोगों को समाचारों के प्रति अत्यधिक जागरुक बनाया है। पल प्रति पल घटने वाली हर बात को जानने की ललक ने कुछ औरकुछ और प्रस्तुत करने की होड़ को बढावा दिया है। सच यह भी है कि लोगों में अधिक से अधिक जानकारी हासिल करने की ललक ने समाचार पत्रों की संख्या में तेजी से वृद्धि की है। एक तरफ इलेक्ट्रानिक मी़डिया से मिली छोटी सी खबर को विस्तार से पढाने की होड़ में शामिल समाचार पत्रों का रंगरूप बदलता गया, वहीं समाचार चैनलों की शुरूआत करके इलेक्ट्रानिक मीडिया ने अपने दर्शकों को खिसकर जाने से रोकने की कवायद शुरू कर दी। हाल यह है कि किसी भी राष्ट्रीय महत्व की घटना-दुर्घटना या फिर समाचार बनने लायक बात को कोई भी छोड़ देने को तैयार नहीं है, इलेक्ट्रानिक मीडिया और ही प्रिंट मीडिया। यही वजह है कि समाचार चैनल जहां राष्ट्रीय समाचारों को अलग से प्रस्तुत करने की कवायद में शामिल हो चुके हैं, वहीं बहुतेरे समाचार पत्र मुख्य अंतिम कवर पृष्ठ के अतिरिक्त राष्ट्रीय समाचारों के दो-तीन पृष्ठ अलग से प्रकाशित कर रहे हैं।
. अंतर्राष्ट्रीय समाचार
ग्लोबल गांव की कल्पना को साकार कर देने वाली सूचना क्रांति के बाद के इस समय में अंतर्राष्ट्रीय समाचारों को प्रकाशित या प्रसारित करना जरूरी हो गया है। साधारण सा साधारण पाठक या दर्शक भी यह जानना चाहता है कि अमेरिका में राष्ट्रपति के चुनाव का परिणाम क्या रहा या फिर हालीवुड में इस माह कौन सी फिल्म रिलीज होने जा रही है या फिर आतंकवादी सरगना बिन लादेन कहां छिपा हुआ है। विश्व भर के रोचकरोमांचक को जानने के लिये अब हिन्दी और अन्य क्षेत्रीय भाषाओं के पाठकों और दर्शकों में ललक बढी है। यही कारण है कि यदि समाचार चैनल दुनिया एक नजर में या फिर अंतर्राष्ट्रीय समाचार प्रसारित कर रहे हैं तो हिन्दी के प्रमुख अखबारों ने अराउण्ड वर्ल्ड, देश विदेश, दुनिया आदि के शीर्षक से पूरा पृष्ठ देना शुरू कर दिया है। समाचार पत्रों चैनलों के प्रमुख समाचारों की फेहरिस्त में कोई कोई महत्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय समाचार रहता ही है।
कई चैनलों समाचार पत्रों ने विश्व के कई प्रमुख शहरों में, खासकर राजधानियों में, अपने संवाददाताओं को नियुक्त कर रखा है। समाचार पत्रों के विदेशी समाचार वाले पृष्ठ को छायाचित्रों सहित इंटरनेट से तैयार किया जाता है। बहुतेरे समाचार विदेशी समाचार एजेंसियों से प्राप्त किये जाते हैं। कई फ्री-लांसिंग करने वाले यानी स्वतंत्र पत्रकारों छायाकारों ने अपनी व्यक्तिगत वेबसाइट बना रखी है, जो लगातार अद्यतन समाचार छायाचित्र उपलब्ध कराते रहते हैं। इंटरनेट पर तैरती ये वेबसाइटें कई मायनों में अति महत्वपूर्ण होती है। सच यह है कि जैसेजैसे देश में साक्षरता बढ रही है, वैसेवैसे अधिक से अधिक लोगों में विश्व भर को अपनी जानकारी के दायरे में लाने की होड़ मच गई है। यही वजह है कि समाचार से जुड़ा व्यवसाय अब अंतर्राष्ट्रीय समाचारों को अधिक से अधिक आकर्षक ढंग से प्रस्तुत करने की होड़ में शामिल हो गया है।
. विषय विशेष के आधार पर
निरंतर बदलती दुनिया ने समाचारों के लिये विषयों की भरमार कर दी है। पहले जहां मात्र राजनीति के समाचार, अपराध के समाचार, खेल-कूद के समाचार, साहित्य-संस्कृति के समाचार से ही समाचार पत्रों का काम चल जाया करता था, वहीं अब सूचना क्रांति, बदलते शैक्षिक परिवेश और बदलते सामाजिक ताने-बाने ने समाचारों के लिये ढेरों विषय पैदा कर दिये हैं। देश में बढ रही साक्षरता जागरुकता ने भी समाचारों के वैविध्य को बढा दिया है। अब कोई भी समाचार पत्र या चैनल समाचारों के वैविध्य को अपनाये बिना चल ही नहीं सकता। मल्टीप्लेक्स और मल्टी टेस्ट रैस्त्रां के इस समय में पाठक-दर्शक वह सब कुछ पढना-सुनना-देखना चाहता है, जो उसके इर्द-गिर्द घट रहा है। उसे हर उस विषय से जुड़ी ताजा जानकारी चाहिए, जो सीधे या फिर परोक्ष रूप से उससे जुड़ी हुई है। जमाना मांग और आपूर्ति के बीच सही तालमेल बैठाकर चलने का है और यही वजह है कि कोई भी समाचार पत्र या चैनल ऐसा कुछ भी छोड़ने को तैयार नहीं है, जो उसके पाठक या दर्शक की पसंद हो सकती है। दिख रहा है सब कुछ के इस समय में वे विषय भी समाचार बन रहे हैं, जिनकी चर्चा सभ्य समाज में करना वर्जित माना जाता रहा है।
विषय विशेष के आधार पर हम समाचारों को निम्नलिखत प्रकारों में विभेदित कर सकते हैं -
() राजनीतिक समाचार
() अपराध समाचार
() साहित्यिक-सांस्कृतिक समाचार
() खेल-कूद समाचार
() विधि समाचार
() विकास समाचार
() जन समस्यात्मक समाचार
() शैक्षिक समाचार
() आर्थिक समाचार
(१०) स्वास्थ्य समाचार
(११) विज्ञापन समाचार
(१२) पर्यावरण समाचार
(१३) फिल्म-टेलीविजन (मनोरंजन) समाचार
(१४) फैशन समाचार
(१५) सेक्स समाचार
(१६) खोजी समाचार . . . आदि।
() राजनीतिक समाचार
समाचार पत्रों में सबसे अधिक पढे जाने वाले और चैनलों पर सर्वाधिक देखे-सुने जाने वाले समाचार राजनीति से जुड़े होते हैं। राजनीति की उठा-पटक, लटके-झटके, आरोपप्रत्यरोप, रोचक-रोमांचक, झूठ-सच, आना-जाना, आदि से जुड़े समाचार सुर्खियों में होते हैं। भारत जैसे देश में, जहां का आम आदमी साल के ३६५ दिनों में से लगभग दो दिन वोटर के रूप में बर्ताव करता है, राजनीति से जुड़े समाचारों का पूरा का पूरा बाजार विकसित हो चुका है। इस राजनीतिक समाचारों के बाजार में समाचार पत्र और समाचार चैनल अपने उपभोक्ताओं को रिझाने के लिये नित नये प्रयोग करते नजर रहे हैं। चुनाव के मौसम में इन प्रयोगों की झड़ी लग जाती है और हर कोई एक दूसरे को पछाड़ कर आगे निकल जाने की होड़ में शामिल हो जाता है।
राजनीतिक समाचारों के बाजार में अपनी पैठ को मजबूत करने और उपभोक्ताओं को चटपटे उत्पाद देने की जुगत में समाचार पत्रों चैनलों ने राजनीतिक पार्टियों के लिये अलगअलग संवाददाता नियुक्त कर रखे हैं। राजनीतिक पार्टियां अब बहुत सचेत हो चुकी हैं और अब मात्र पार्टी प्रवक्ता नियुक्त करके या फिर मीडिया प्रकोष्ठ स्थापित करके काम नहीं चलाया जाता, बल्कि सुव्यवस्थित ढंग से मीडिया मैनेजमेंट कोर स्थापित किये जा रहे हैं। सूचना क्रांति के बाद घटी इस घटना को अत्यधिक महत्वपूर्ण माना जाना चाहिए कि सन् २००४ के आम चुनावों में कुछ पार्टियों ने देश भर से अपने पार्टी प्रवक्ताओं और मीडिया प्रभारियों को बुलाकर विधिवत प्रशिक्षण दिया कि किस तरह वे समाचार पत्रों और चैनलों को मैनेज करें और मीडिया फ्रैंडली नजर आयें।
सच्चाई यह है कि किसी भी लोकसभाविधानसभा चुनावों में प्रत्याशी समाचार पत्रों चैनलों में अधिक से अधिक प्रचार पाना चाहते हैं और इसके लिये वे तरहतरह से स्थानीय संवाददाताओं को प्रभावित करने की कोशिश करते हैं। कभी अपनी जाति-धर्म-रिश्ते-क्षेत्र का हवाला देकर तो कभी धन का प्रलोभन धमकियों का डर बैठाकर। ऐसे में जो समाचार पत्र या चैनल लोगों में अत्यधिक लोकप्रिय होते हैं, उन पर दवाब अधिक होता है। यही वजह है कि इनसे जुड़े संवाददाताओं के सामने यह चुनौती होती है कि वे किस तरह अपनी अपने संस्थान की शुचिता और निष्पक्षता को बचाये रख सकें।
राजनीतिक समाचारों की प्रस्तुति में पहले से अधिक बेबाकी आयी है। रोचक ढंग से राजनीति पर मार करने की रणनीति को लोगों द्वारा सराहा भी जा रहा है। सच यह है कि अपने देश में लोकतंत्र की दुहाई के साथ जीवन के लगभग हर क्षेत्र में राजनीति की दखल बढा है और इसी कारण राजनीतिक समाचारों की भी संख्या बढी है। ऐसे में इन समाचारों को नजरअंदाज कर जाना संभव नहीं है। राजनीतिक समाचारों की आकर्षक प्रस्तुति लोकप्रियता हासिल करने का बहुत बड़ा साधन बन चुकी है।
. अपराध समाचार
राजनीतिक समाचारों के बाद अपराध समाचार ही महत्वपूर्ण होते हैं। बहुतेरे पाठकों दर्शकों को अपराध समाचार जानने की भूख होती है। इसी भूख को शांत करने के लिये ही समाचार पत्रों में अपराध डायरी चैनलों पर सनसनी, वारदात, क्राइम फाइल जैसे समाचार कार्यक्रम प्रकाशित-प्रसारित किये जा रहे हैं। एक अनुमान के अनुसार किसी समाचार पत्र में लगभग पैंतीस प्रतिशत समाचार अपराध से जुड़े होते हैं। सच तो यह है कि अपराध के समाचार सामने जाने के बाद कुछ महत्वपूर्ण समाचारों को छोड़कर सभी बेमानी लगने लगते हैं।
हर संवाददाता के लिये यह समझना जरूरी है कि अपराधिक घटनाओं का सीधा सम्बंध व्यक्ति, समाज, सम्प्रदाय, समुदाय, धर्म और देश से होता है। अपराधिक घटनाओं का प्रभाव यदि व्यापक होता है तो यह जरूरी हो जाता है कि एक बड़े पाठक-दर्शक वर्ग का ख्याल रखा जाये तथा घटना से जुड़ी हर संभावित खबर, फोटो और खबर के पीछे की खबर को प्रकाशित प्रसारित किया जाए। ध्यान देने योग्य बात यह है कि अपराधिक समाचारों को संकलित, लिखते या प्रकाशित-प्रसारित करते समय उसकी कानूनी प्रक्रिया और सामाजिक पहलुओं की सारी जानकारी प्राप्त की जाए। संवाददाता की विश्वसनीयता का भी पूरा का पूरा ख्याल रखा जाये। वास्तव में अपराध समाचार लिखते समय अपनी जवाब-देही उत्तरदायित्वों का पूरा का पूरा ख्याल करना जरूरी होता है। यह बहुत महत्वपूर्ण है कि अपराध संवाददाता बनाते समय इस बात का ध्यान रखा जाता है कि जिसे यह जिम्मेदारी सौंपी जा रही है, उसे पत्रकारिता के हर पहलू की जिम्मेदारी है भी या नहीं।
. साहित्यिक-सांस्कृतिक समाचार
समाचार पत्रों चैनलों पर सांस्कृतिक, साहित्यिक समाचारों का चलन बढा है। यह एक बहुत बड़ा परिवर्तन है कि हिन्दी के समाचार चैनलों ने साहित्य संस्कृति के समाचारों को केवल प्रमुखता से देना शुरू किया है, बल्कि साहित्य संस्कृति के कुछ विशेष समाचार कार्यक्रम ठीक उसी तर्ज पर शुरु किये हैं, जैसा कि समाचार पत्र अपने यहां नियमित साहित्यिक सांस्कृतिक कालम के रूप में करते आये हैं। एक अध्ययन के अनुसार दर्शकों के एक वर्ग ने अपराध राजनीति के समाचार कार्यक्रमों से कहीं अधिक अपनी संस्कृति से जुड़े समाचारों समाचार कार्यक्रमों से जुड़ना पसंद किया है।
समाचार पत्रों ने भले ही व्यंग्य के नियमित कालमों को अब लगभग बंद कर दिया हो, लेकिन साहित्य-संस्कृति के नियमित पृष्ठ दिया जाना नहीं रुका है। इधर कई समाचार पत्रों ने अभियान चला कर दूर-दराज के इलाकों की साहित्यिक सांस्कृतिक विभूतियों धराहरों को सामने लाने का अभिनव प्रयास किया और यह पाठकों द्वारा सराहा भी गया है। यह भी कम महत्वपूर्ण नहीं है कि कई समाचार पत्रों ने साहित्यिक-सांस्कृतिक संवाददाता रखने और इन्हीं विषयों से जुड़ी डेस्क बनाने की पहल की है। वास्तव में यह कवायद करनी इसलिये भी जरूरी हो गयी है कि साहित्य संस्कृति पर उपभोक्तावादी संस्कृति बाजार का प्रहार दिखाकर केन्द्र प्रदेश की सरकारें बहुत बड़ा बजट इन्हें संरक्षित करने प्रचारित-प्रसारित करने में खर्च कर रही हैं। साहित्य संस्कृति के नाम पर चलने वाली बड़ीबड़ी साहित्यिक सांस्कृतिक संस्थाएं आयोजनों, प्रकाशन पुरस्कारों के नाम पर करोड़ों रुपये खर्च कर रही हैं। ये संस्थाएं सरकारी, अर्धसरकारी निजी यानी सभी तरह की हैं।
यही नहीं, साहित्य संस्कृति के नाम पर विवादों के बढने की घटनाएं बढी हैं। वादप्रतिवाद, आरोपप्रत्यारोप और गुटबाजी ने साहित्यसंस्कृति में मसाला समाचारों की संभावनाओं को बहुत बढाया है। साहित्यिक, सांस्कृतिक उठा-पटक को मिर्च-मसाला लगाकर समाचार के रूप में प्रस्तुत करने का चलन बढा है। इस चलन को स्वीकारने वालों की फौज भी तैयार हो गई है। इसीलिये समाचार पत्र, चैनल पत्रिकायें इन विषयों को छोडकर स्वयं के होने की कल्पना करना ही नहीं चाहते।
. खेल-कूद समाचार
पाठकों दर्शकों की एक बहुत बड़ी संख्या खेल समाचारों को पढना, देखना, सुनना चाहती है। हर समाचार संस्थान में खेल संवाददाताओं और खेल डेस्क होना निश्चित है। बहुत से संस्थान के खेल संवाददाता खेल सम्पादक के रूप में ऐसे ही लोगों की नियुक्ति करते हैं, जो खिला़ड़ी भी हों या पूर्व में रहे हों।
वास्तव में प्रत्येक खेल के अपने तकनीकी शब्द होते हैं और एक निश्चित भाषा भी। खेल के जानकार लोगों को किसी समाचार पत्र चैनल से यह अपेक्षा होती है कि वह खेल की ताजा मुकम्मल खबर दे। रोचकरोमांचक ढंग से खेल समाचारों की प्रस्तुति देते समय इस बात का भी ध्यान रखा जाता है कि खेल शब्दावली का अतिशय प्रयोग करके समाचार को बोझिल बना दिया जाए। निहायत अजनबी खेल शब्द का प्रयोग करते समय एक बार उसका सामान्य बोलचाल में अर्थ दे देना उचित होता है।
खेल समाचारों के लिये आंकड़े रिकार्ड प्राण की तरह होते हैं। खेलों की दुनिया में लगातार आंकड़े और रिकार्ड जुड़ते रहते हैं। इसलिये जरूरी है कि खेल संवाददाता खेल सम्पादक के पास अपनी एक ऐसी कम्प्यूटर फाइल हो, जिसमें आंकड़ों रिकार्डों को निरंतर दर्ज किया जाता रहे। एक सच यह भी है कि आंकड़े जहां एक तरफ किसी समाचार को रोचक बनाते हैं वहीं अधिकता में बोझिल भी बना देते हैं। आंकड़ों को यदि समाचार के साथ विशेष रूप से पृष्ठ सज्जा के अनुसार प्रस्तुत किया जाए तो अच्छा होता है। खेल समाचारों को यदि रनिंग कमेंट्री यानी आंखों देखा हाल की तरह लिखा जाये तो वह पाठकों के लिये अत्यधिक रुचिकर होता है, लेकिन इसका संक्षिप्त होना बहुत जरूरी है। समाचार चैनलों के सामने खेल प्रस्तुति की बहुत अधिक चुनौतियां नहीं होती। मात्र रोचक प्रस्तुति से ही काम चल जाता है। वहां दृश्य की गुणवत्ता ही दर्शकों के बीच लोकप्रियता तय करती है।
. विधि समाचार
न्यालाय से जुड़े समाचार भी अपनी अलग अहमियत रखते हैं। नये कानूनों, उनके अनुपालन और उसके प्रभाव से लोगों को परिचित कराना बहुत जरूरी होता है। बहुत से ऐसे लोग होते हैं, जो किसी विशेष मुकदमें की न्यायालयी प्रक्रिया निर्णय से अवगत होना चाहते हैं। ऐसे मुकदमों की जानकारी देना तो और भी जरूरी होता है, जिनका प्रभाव समाज, सम्प्रदाय, प्रदेश देश पर पड़ता हो। यही वजह है कि न्याय के हर पक्ष को सही सार्थक ढंग से रखने के लिये हर समाचार संस्थान में विधि संवाददाताओं की नियुक्ति होती है। इसके लिये विधि की शिक्षा प्राप्त होना जरूरी होता है। कुछ समाचार पत्रों ने अपने यहां कार्यरत अधिवक्ताओं को संवाददाता नियुक्त कर रखा है, जो समय पर विभिन्न न्यायालयों से जुड़ी खबरों को लिखते हैं।
अन्य समाचार
इसी तरह विकास कार्यों से जुड़े विकास समाचार, जन समस्याओं की परत दर परत खोलते समाचार, नये शैक्षिक आयामों तरहतरह की शैक्षिक गतिविधियों को प्रस्तुत करते शैक्षिक समाचार, आर्थिक व्यापार जगत की उठापटक से परिचित कराते समाचार, स्वास्थ्य के हर पहलू से जु़ड़े समाचार, विज्ञान समाचार, पर्यावरण समाचार, मनोरंजन से जुड़े समाचार, फैशन समाचार सैक्स समाचार भी किसी समाचार पत्र या चैनल के लिये महत्वपूर्ण होते हैं। यहां यह बताते चलें कि सैक्स समाचारों में बलात्कार से जुड़े समाचार नहीं रखे जाते। वास्तव में बड़ेबड़े राष्ट्रीयअंतर्राष्ट्रीय स्तर के सैक्स स्केण्डलों प्रमुख व्यक्तियों की निजी जिंदगी के अनछुए पहलुओं को खास से आम कर देने की ललक ने ही सैक्स समाचारों को समाचारों की फेहरिस्त में शामिल कराया है। सैक्स भ्रांतियों को दूर करने और जनसंख्या नियंत्रण करने के बहाने तरहतरह के समाचार प्रस्तुत करने का भी दौर आन पड़ा है।
समाचारों की बात हो और खोजी समाचार की बात हो तो बात अधूरी ही रह जाएगी। सामान्य विवरण से हटकर गहराई के तह तक पहुंचाने वाले समाचार, जिसमें पाठक विभिन्न गलियारों से होता हुआ यह जानकारी जानने की अपनी इच्छा को पूरी करने में सफल हो जाता है कि यह घटना क्यों हुई, कैसे हुई और किनकिन लोगों की भागीदारी से हुई। सच यह है कि आज का साधारण सा साधारण आदमी बढते सूचना साधनों से केवल सीधे जुड़ा हुआ है, बल्कि वह अधिक तार्किक बुद्धि वाला भी है। वह किसी समाचार को ही पढना, सुनना या देखना भर नहीं चाहता, बल्कि उसकी पृष्ठभूमि में तमाम तर्कों के साथ उतर जाना चाहता है। लोगों की इस भूख को खोजी पत्रकारिता द्वारा ही मिटाया जा सकता है।
वास्तव में खोजी पत्रकारिता का सीधा सम्बंध जानने के अधिकार से है। भारत में अभी सूचना के अधिकार प्राप्त कर पाने की बात बहुत निचले पायदान पर पड़ी हुई है। यही वजह है कि खोजी पत्रकारिता को जिस हद तक सफल होना चाहिए था, नहीं हो पा रही है। बहरहाल स्थिति उतनी खराब नहीं है। कई समाचार चैनलों ने अपने छिपे कैमरों के जरिये कई समाचार पत्रों ने दिन रात की छापेमारी के जरिये खोजी पत्रकारिता को नया आयाम देने की कोशिश की है और लोकप्रियता हासिल की है।
. घटना के महत्व के आधार पर
. विशिष्ट समाचार
वे समाचार जिनके बारे में पहले से कुछ भी मालूम हो, परंतु जब वे अकस्मात घटित हों तो उनका विशेष महत्व और प्रभाव होता हो, विशिष्ट समाचार कहलाते हैं। विशिष्ट समाचार अपनी विशिष्टता, विशेषता और खूबी के कारण ही समाचार पत्र के मख्य पृष्ठ पर स्थान पाने योग्य होते हैं। रेल या विमान की बड़ी दुर्घटना, किसी महत्वपूर्ण व्यक्ति के असामयिक निधन संबंधी समाचार इसी कोटि में आते हैं।
. व्यापी समाचार
वे समाचार जिनका प्रभाव विस्तृत हो अर्थात जो बहुसंख्यक लोगों को प्रभावित करने वाले तथा आकार में भी विस्तृत हों, व्यापी समाचार कहलाते हैं। ये समाचार अपने आप में पूर्ण होते हैं और समाचार पत्र के प्रथम पृष्ठ पर छाये रहते हैं। इनके शीर्षक अत्यधिक आकर्षक और विशेष रूप से सुशोभित होते हैं, ताकि ये अधिकाधिक लोगों को अपनी ओर आकृष्ट कर सकें। इसके अंतर्गत रेल बजट, वित्तीय बजट, आम चुनाव आदि से संबंधित समाचार आते हैं।
. अपेक्षितता-अनपेक्षितता के आधार पर
. डायरी समाचार
विविध समारोहों, गोष्ठियों, जन-सभाओं, विधान-सभाओं, विधान परिषदों, लोकसभाओं, राज्य सभाओं आदि के समाचार जो अपेक्षित होते हैं और सुनियोजित ढंग से प्राप्त होते हैं, डायरी समाचार कहलाते हैं।
. सनसनीखेज समाचार
हत्या, दुर्घटना, प्राकृतिक विपदा, राजनीतिक अव्यवस्था आदि से संबंधित समाचार जो अनपेक्षित होते हैं और आकस्मिक रूप से घट जाते हैं, सनसनीखेज समाचार कहलाते हैं।
ड़. समाचार के महत्व के आधार पर
. महत्वपूर्ण समाचार
बड़े पैमाने पर दंगा, अपराध, दुर्घटना, प्राकृतिक विपदा, राजनीतिक उठापटक से संबंधित समाचार, जिनसे जन-जीवन प्रभावित होता हो और जिनमें शीघ्रता अपेक्षित हो, महत्वपूर्ण समाचार कहलाते हैं।
. कम महत्वपूर्ण समाचार
जातीय, सामाजिक, व्यावसायिक एवं राजनीतिक संस्थाओ, संगठनों तथा दलों की बैठकें, सम्मेलन, समारोह, प्रदर्शन, जुलूस, परिवहन तथा मार्ग दुर्घटनाएं आदि से सम्बंधित समाचार, जिनसे सामान्य जनजीवन प्रभावित होता है और जिनमे अतिशीघ्रता अनपेक्षित हो, कम महत्वपूर्ण समाचार कहलाते हैं।
. सामान्य महत्व के समाचार
आतंकवादियों आततायियों के कुकर्म, छेड़छाड़, मारपीट, पाकेटमारी, चोरी, ठगी, डकैती, हत्या, अपहरण, बलात्कार के समाचार, जिनका महत्व सामान्य हो और जिनके अभाव में कोई ज्यादा फर्क पड़ता हो तथा जो सामान्य जनजीवन को प्रभावित करते हों, सामान्य महत्व के समाचार कहलाते हैं।
. सम्पादन के लिये प्रस्तुत समाचार के आधार पर
. पूर्ण समाचार
वे समाचार जिनके तथ्यों, सूचनाओं, विवरणों आदि में दोबारा किसी परिवर्तन की गुंजाइश हो, पूर्ण समाचार कहलाते हैं। पूर्ण समाचार होने के कारण ही इन्हें निश्चिंतता के साथ संपादित प्रकाशित किया जाता है।?
. अपूर्ण समाचार
वे समाचार जो समाचार एजेंसियों से एक से अधिक हिस्सों में आते हैं और जिनमें जारी अथवा मोरा लिखा होता है, अपूर्ण समाचार कहलाते हैं। जब तक इन समाचारों का अंतिम भाग प्राप्त हो जाये ये अपूर्ण रहते हैं।
. अर्ध विकसित समाचार
दुर्घटना, हिंसा या किसी महत्वपूर्ण व्यक्ति का निधन आदि के समाचार, जो कि जब और जितने प्राप्त होते हैं उतने ही, उसी रूप में ही दे दिये जाते हैं तथा जैसेजैसे सूचना प्राप्त होती है और समाचार संकलन किया जाता है वैसेवैसे विकसित रूप में प्रकाशित किये जाते हैं, अर्ध विकसित समाचार कहलाते हैं।
. परिवर्तनशील समाचार
प्राकृतिक विपदा, आम चुनाव, बड़ी दुर्घटना, किसी महत्वपूर्ण व्यक्ति की हत्या जैसे समाचार, जिनके तथ्यों, सूचनाओं तथा विवरणों में निरंतर परिवर्तन संशोधन की गुंजाइश हो, परिवर्तनशील समाचार कहलाते हैं।
. बड़े अथवा व्यापी समाचार
आम चुनाव, केन्द्र सरकार का बजट, राष्ट्रपति का अभिभाषण जैसे समाचार, जो व्यापाक, असरकारी प्रभावकारी होते हैं तथा जिनके विवरणों में विस्तार विविधता होती है और जो लगभग समाचार पत्र के प्रथम पृष्ठ का पूरा ऊपरी भाग घेर लेते हैं, बड़े अथवा व्यापी समाचार कहलाते हैं।
. समाचार प्रस्तुत करने के आधार पर
. सीधे समाचार
वे समाचार जिनमें तथ्यों की व्याख्या नहीं की जाती हो, उनके अर्थ नहीं बताये जाते हों तथा तथ्यों को सरल, स्पष्ट और सही रूप में ज्यों का त्यों प्रस्तुत किया जाता हो, सीधे समाचार कहलाते हैं।
. व्याख्यात्मक समाचार
वे समाचार जिनमें घटना के साथ ही साथ पाठकों को घटना के परिवेश, घटना के कारण और उसके विशेष परिणाम की पूरी जानकारी दी जाती हो, व्याख्यात्मक समाचार कहलाते हैं।


यह एक स्वीकृत नियम है कि विपरीत कभी सही नहीं होता है। उदाहरण के लिए, सभी पत्रकार नागरिक होते हैं, लेकिन सभी नागरिक पत्रकार नहीं होते हैं। क्यों? एक साधारण नागरिक इस समाज, पर्यावरण और देश को रहने के लिए बेहतर जगह बनाने की अतिरिक्त जिम्मेदारी क्यों नहीं ले सकता है? नागरिक पत्रकारिता की इस पहल के माध्यम से हमारा उद्देश्य ठीक वही करने का है। जीवन की दैनिक गतिविधियों के महज़ दर्शक बने रहने के बजाय, हम एक गर्वित सहभागी बनें। हम आगे आएँ, एकजुट हो जाएँ और हर सामाजिक और राजनीतिक अन्याय या किसी भी प्रकार के अन्याय के खिलाफ हमारी आवाज उठाएँ! सच कहा जाना चाहिए; ज़ोर से कहा जाना चाहिए। एक नागरिक की हैसियत से, हमारे विचार प्रकट करने का हमें अधिकार है। अपनी बात रखने के लिए, अच्छी लिखावट के साथ-साथ आपको एक बेहतर मंच की भी जरूरत होती है, जो यह वेबसाइट आपको प्रदान करती है। असंबद्ध और घिसे-पिटे संवाददाताओं को सुनने के बजाय, लोगों की वास्तविक आवाज गूंजने की जरूरत है। जोड़-तोड़ हटा दिया जाना चाहिए और पूरा जोर असली मुद्दों पर लगाना चाहिए, और इसके लिए हमें आगे आना पडेगा। जब हमारे पास अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का संवैधानिक अधिकार है, तो हम इसे एक अच्छे हेतु के लिए उपयोग करें। नागरिक पत्रकारिता पर अपने विचारों और ज्ञान को साझा करना, आपके संदेश को अधिक महत्वपूर्ण और प्रभावी कर देगा।

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