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Friday 13 June 2014

शाब्दिक और अशाब्दिक संचार (Verbal and Non-Communication)

संचार प्रक्रिया में शब्दों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। इसके बगैर संदेश की संरचना और सम्प्रेषण संभव नहीं है। संदेश का सम्प्रेषण चाहे मौखिक हो या लिखित, दोनों ही परिस्थितियों में शब्दों की भूमिका महत्वपूर्ण होती है। शब्दों के आविष्कार से पूर्व मानव प्रतिक चिन्हों तथा अपनी भाव-भंगिमाओं के माध्यम से संदेश सम्प्रेषण करता था। इस आधार पर संचार मुख्यत: दो प्रकार के होते हैं- पहला, शाब्दिक संचार और दूसरा, अशाब्दिक संचार।
शाब्दिक संचार 
(Verbal Communication)  

शाब्दिक संचार की प्रक्रिया काफी जटिल है। इसके बावजूद शाब्दिक संचार के माध्यम से मानव में बौद्धिकता का विकास होता है। मानवीय संचार में शब्दों का सर्वाधिक प्रयोग किया जाता है। लरनर के शब्दों में- मानव अपनी ज्ञानेन्द्रियों द्वारा संचार प्रक्रिया से गुजरता है, जिसमें स्वर द्वारा संचार को प्राथमिकता प्राप्त है। क्योंकि मानव किसी वस्तु के बारे में ज्ञानेन्द्रियों द्वारा चाहे जो भी सोचें व अनुभव करें, परंतु जब तक उसे शाब्दिक रूप नहीं देगा, तब तक उसका सम्पूर्ण विवरण दूसरों को सम्प्रेषित नहीं कर सकता है। तात्पर्य यह है कि शब्दों के अभाव में व्यापक संचार की कल्पना संभव नहीं है। शाब्दिक संचार दो प्रकार के होते हैं। पहला, मौखिक संचार और दूसरा, लिखित संचार।

(i) मौखिक संचार (Oral Communication) : वे सूचनाएं लिखित या लिपिबद्ध न होकर केवल जुबानी भाषा में प्रापक तक पहुंचती है, उसे मौखिक संचार कहते हैं। संचार की इस प्रक्रिया द्वारा संचारक एवं प्रापक के मध्य संवाद स्थापित होता है। एप्पले के अनुसार- मौखिक शब्दों द्वारा पारस्परिक संचार संदेश वाहन की सर्वश्रेष्ठ कला है। मौखिक संचार द्वारा सामूहिक ज्ञान व विचार का धीरे-धीरे विकास होता है। मौखिक संचार का उपयोग मनुष्यों के साथ-साथ पशुओं दबंदर व तोता½ द्वारा भी किया जाता है। मौखिक संचार निजी अनौपचारिक तथा लचीला होता है, जो व्याकरणगत् तथा अन्य नियमों से बंधा नहीं होता है।

मौखिक संचार के माध्यम : मौखिक संचार के दौरान संदेश सम्प्रेषित करने के लिए यथाउचित माध्यम का होना जरूरी है। माध्यम का चुनाव करते समय परिस्थिति को ध्यान में रखना आवश्यक है, क्योंकि सभी माध्यम सभी परिस्थितियों में उपयुक्त नहीं होते हैं। मौखिक संचार के प्रचलित माध्यम निम्नलिखित हैं :- 
(1) वार्तालॉप : सामान्यत: दो या दो से अधिक व्यक्तियों के बीच विचारों के विनियम को वार्तालॉप कहते हंै। यह द्वि-मार्गीय प्रक्रिया है, जिसमें संचारक और प्रापक आमने-सामने बैठकर विचार-विमर्श करते हैं। इससे आपसी समझ विकसित होती है तथा दोनों को स्वतंत्र रूप से अपने विचारों को व्यक्त करने का मौका मिलता है। व्यवसाय, विपणन, संगठन, संस्थान, सरकार में मौखिक संचार का विशेष महत्त्व है। गुरू-शिष्य, पति-पत्नी, मालिक-नौकर, वरिष्ठ-कनिष्ठ के बीच वार्तालॉप इसके उदाहरण हैं। 
(2) प्रेस सम्मेलन : इसके अंतर्गत् विभिन्न समाचार पत्रों, टीवी चैनलों तथा समाचार एजेंसियों के संवाददाताओं को आमंत्रित कर किसी घटना विशेष या जानकारी से अवगत कराया जाता है। संवाददाता सम्बन्धित घटना या जानकारी को प्रिंट माध्यमों में प्रकाशित तथा इलेक्ट्रॅानिक माध्यमों में प्रसारित करके जनता व सरकार तक पहुंचाते हैं। प्रेस सम्मेलन का आयोजन राजनीतिज्ञ, सरकार के प्रतिनिधि या लोक प्रशासक, शैक्षिक संस्थानों के प्रमुख आदि के द्वारा आयोजित किया जाता है। लोकतंत्र में प्रेस सम्मेलन को जनसंचार का शक्तिशाली माध्यम माना जाता है। 
(3) प्रदर्शन : प्रदर्शन भी मौखिक संचार का एक माध्यम है। इसका उपयोग औद्योगिक क्षेत्र में विपणन (मार्केटिंग) सम्बन्धी नीतियों के निर्धारण में किया जाता है। लोकतांत्रिक देशों में जनमत को अपने पक्ष में करने के लिए प्रदर्शन का सहारा लिया जाता है। प्रदर्शन के माध्यम से सेल्समैन अपनी कम्पनी के उत्पाद की विशेषताओं को बतला कर उपभोक्ताओं में अभिरूचि पैदा करने का प्रयास करता है। विभिन्न सरकारी व गैर-सरकारी संगठनों के सदस्य अपनी मांगों के संदर्भ में सरकार व उच्चाधिकारियों का ध्यान आकर्षित करने लिए प्रदर्शन करते हंै। 
(4) भाषण : मौखिक संचार में भाषण का महत्वपूर्ण स्थान है। भाषण के कई रूप होते हैं। अध्यापक के भाषण को व्याख्यान, उपदेशक के भाषण को प्रवचन कहा जाता है। भाषण कला संचार का एक शक्तिशाली माध्यम है, जो वक्ता (संचारक) और श्रोता (प्रापक) को आपस में जोडऩे का कार्य करता है। प्रभावपूर्ण भाषण में आत्मीयता, क्रमबद्धता, अभिनेयता, निर्भीकता आदि गुणों का समावेश आवश्यक होता है। 
(5) वाद-विवाद : जब किसी विषय के संदर्भ में लोगों के विचार अलग-अलग होते हैं। विचार-विमर्श के दौरान सम्बन्धित विषय के पक्ष में कुछ लोग अपना तर्क देते है तथा कुछ लोग विपक्ष में। सभी अपने-अपने तर्को से एक-दूसरे के विचारों का खण्डन-मण्डन करते हैें, तो इस प्रक्रिया को वाद-विवाद कहते हैं। वाद-विवाद भी मौखिक संचार का प्रभावशाली माध्यम है। 
(6) विचार गोष्ठी : यह व्याख्यान की छोटी श्रृंखला होती है। इसमें वक्ताओं की संख्या दो से पांच तक होती है। सहयोगी विषय से सम्बन्धित प्रश्न पूछते हैं, जिसका उत्तर अन्य सहयोगी देते हैं। वक्ताओं की संख्या के आधार पर विषय के विभिन्न पहलुओं को विभाजित किया जाता है। सभी वक्ता अलग-अलग पहलुओं पर अपने विचार व्यक्त करते हंै। 
(7) पैनल वार्ता : पैनल वार्ता में विशेषज्ञों का छोटा समूह बड़े समूह से वार्ता करता है। इसमें एक संयोजक होता है, जो वार्ता में भाग लेने वाले सदस्यों का परिचय कराता है और वार्ता के सारांश को प्रस्तुत करता है। इसमें एक व्यक्ति अध्यक्ष या संयोजक की भूमिका का निर्वहन कर सम्पूर्ण वार्तालाप पर नियंत्रण रखता है।
(8) सम्मेलन : मौखिक संचार का एक माध्यम सम्मेलन भी है। सम्मेलन से तात्पर्य एक ऐसी बैठक से है, जिसे विचार-विमर्श के लिए आहूत की जाती है। सम्मेलन में किसी समस्या के समाधान के लिए दो या दो से अधिक व्यक्तियों के विचारों को एकत्रित किया जाता है। जैसे- राजनीतिज्ञों, वरिष्ठ अधिकारियों और वैज्ञानिकों के विचार, जिससे किसी समस्या का समाधान किया जा सकता है। 

मौखिक संचार की विशेषताएं : 
(1)  कम समय में अधिक लोगों के साथ संवाद संभव,  
(2)  त्रुटियां होने की कम संभावना,
(3)  समय की बचत,  
(4)  विचार-विनिमय से व्यक्तिगत सम्बन्धों में मधुरता, 
(5)  आपातकालीन परिस्थितियों में अत्यन्त उपयोगी, 
(6)  द्रुतगति से संदेश का सम्प्रेषण,  
(7)  कागज, कलम, कम्प्यूटर, टाइपराइटर व टाइपिस्ट की जरूरत नहीं, और 
(8)  प्रापक से फीडबैक मिलने की पूरी संभावना होती है। 

 (ii)  लिखित संचार (Written Communication) : मौखिक संचार से संदेश सम्प्रेषण की संभव समाप्त होने की स्थिति में लिखित संचार एक महत्वपूर्ण माध्यम होता है। लिखित संचार से तात्पर्य ऐसी सूचनाओं से है जो शब्दों में तो होती है, लेकिन उसका स्वरूप मौखिक न होकर लिखित होती है। प्रभावी संचार के लिए लिखित संदेश में जहां स्पष्टता व शुद्धता आवश्यक है, वहीं व्याकरण सम्बन्धी नियमों का कड़ाई से पालन किया जाता है। नोटिस, स्मरण पत्र, प्रस्ताव, शपथ पत्र, शिकायत पत्र, नियुक्ति पत्र, पदोन्नति पत्र, वित्तीय प्रारूप इत्यादि लिखित संचार के उदाहरण हैं। 

लिखित संचार के माध्यम : लिखित संचार माध्यमों का उपयोग विभिन्न सरकारी, गैर-सरकारी संस्थाओं में सूचनाओं के आदान-प्रदान के लिए किया जाता है। इसके अभाव में संस्थागत नीतियों, योजनाओं तथा क्रिया-कलापों की जानकारी देना संभव नहीं है। लिखित संचार के प्रचलित माध्यम निम्नलिखित हैं :-
(1) सूचना पट्ट : यह लिखित संचार का सर्वाधिक प्रचलित माध्यम है, जिसे स्कूल-कालेज, सरकारी-गैर सरकारी विभागों के कार्यालयों में देखा जा सकता है। प्राय: सूचना पट्ट पर दैनिक सूचनाएं दी जाती है, जो संक्षिप्त होती हैं। ऐसी सूचनाओं को पढऩे और समझने में एक मिनट से अधिक का समय नहीं लगता है।   
(2) समाचार बुलेटिन: किसी संस्था, संगठन या विभाग के कार्यालय समाचारों की लिखित सूचना को समाचार बुलेटिन कहते हंै। कहीं समाचर बुलेटिन को सूचना पट्ट पर चस्पा कर दिया जाता है, तो कहीं गृह पत्रिका के रूप में प्रकाशित किया जाता है। समाचार बुलेटिन के माध्यम से कर्मचारियों को संस्था, संगठन या विभाग की नीतियों, कार्यों, योजनाओं, नियमों तथा भविष्य की रणनीतियों से अवगत कराया जाता है। 
(3) प्रिंट मीडिया : लोगों को सूचनाओं एवं विचारों से अवगत कराने का लिखित माध्यम है- प्रिंट मीडिया। इसके अंतर्गत् समाचार-पत्र व पत्रिकाएं आती है, जो वाह्य लिखित संचार का प्रभावी माध्यम है। इनमें घटनाओं एवं विचारों की विस्तृत जानकारी प्रकाशित होती है। समाचार पत्रों का दैनिक व साप्ताहिक तथा पत्रिका का साप्ताहिक, पाक्षिक, मासिक, अद्र्धवार्षिक एवं वार्षिक प्रकाशन होता है। 
(4) नियम पुस्तिका : उच्चस्तरीय प्रशासक सरकार एवं संगठन की नीतियों के अनुरूप नियम बनाते तथा पुस्तिका के रूप में प्रकाशित कराते हैं, जिससे अधीनस्थ कर्मचारियों को पता चलता हैं कि उन्हें क्या करना है... किस बात पर विशेष ध्यान देना है? नियम पुस्तिका वाह्य एवं आंतरिक लिखित संचार का महत्वपूर्ण माध्यम है।    
(5) कार्यालय आदेश : यह लिखित संचार का परम्परागत् माध्यम है, जिसको संस्था, संगठन या विभाग के प्रमुख द्वारा अधीनस्थों के स्थानांतरण, पदोन्नति, वेतनवृद्धि तथा अन्य आदेशों का अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए निकाला जाता है। प्रारंभ में कार्यालय आदेश हस्तलिखित होते थे। तकनीकी विकास के साथ-साथ टाइपराइटर और कम्प्यूटर का प्रयोग भी कार्यालय आदेश तैयार करने में किया जाने लगा है।   
(6) पत्र : प्राय: लिखित संदेश को पत्र कहते हैं। यह कई प्रकार के होते है, जैसे- शिकायती पत्र, स्मरण पत्र, सुझाव पत्र इत्यादि। सभी सरकारी, गैर-सरकारी कार्यालयों में एक निश्चित स्थान पर शिकायत एवं सुझाव पत्र पेटिका रखी होती है। इसका उपयोग कोई भी व्यक्ति कर सकता है। पत्र लिखित संचार का माध्यम है।
(7) फार्म : यह एक निश्चित प्रारूप में होता है, जिसका उपयोग विभिन्न उद्देश्यों की पूर्ति के लिए किया जाता है। फार्म के माध्यम से नियत स्थान पर नाम, पिता का नाम, घर का पता, जन्मतिथि, टेलीफोन नम्बर समेत विभिन्न जानकारी लिखने के लिए जगह रिक्त रहता है।   
(8) पुस्तकें : यहभी लिखित संचार का प्रमुख माध्यम है। साहित्यकार, चिंतक, विचारक, दार्शनिक पुस्तकों के माध्यम से अपने विचारों को दूसरों तक पहुंचाने का कार्य करते हंै। इससे जनता में जागृति आती है। 

लिखित संचार की विशेषताएं 
(1) मौखिक संचार की तुलना में अधिक विश्वसनीय,  
(2) भविष्य में साक्ष्य और संदर्भ के रूप में प्रस्तुतिकरण संभव, 
(3) संचारक और प्रापक की एक साथ मौजूदगी जरूरी नहीं, 
(4) कम लागत में स्पष्ट और विस्तृत जानकारी,
(5) संदेश की शत-प्रतिशत गोपनीयता, 
(6) ज्ञान को पीढ़ी-दर-पीढ़ी स्थानांतरण, और 
(7) कमजोर स्मृति के लोगों के लिए लाभकारी होता है। 

   अशाब्दिक संचार
(Non-Verbal Communication

संचार केवल शाब्दिक ही नहीं बल्कि अशाब्दिक भी होता है। जैसे, आवाज का उतार-चढ़ाव, शारीरिक मुद्रा, मुखाभिव्यक्ति इत्यादि। ऐसे संकेतों को अशाब्दिक संचार कहते है। अशाब्दिक संचार के अंतर्गत् विचारों व भावनाओं को बगैर शब्दों के अभिव्यक्त किया जा सकता है। कई स्थानों पर जब विचारों व भावनाओं को शब्दों में व्यक्त करना संभव नहीं होता है। तब अशाब्दिक संचार ही सबसे प्रभावी माध्यम होता है। अन्य शब्दों में, शब्द रहित संचार अशाब्दिक संचार है जिसके अंतर्गत् अपने अनुभवों एवं व्यवहारजन्य संकेतों के आधार पर संचारक अपनी बात को प्रापक तक पहुंचाता है। अशाब्दिक भाषा के अंतर्गत् गुप्त संदेश छुपा होता है। 

अशाब्दिक संचार के माध्यम : संचार विशेषज्ञ मेहराबियन ने सन् 1972 में अपने अध्ययन के दौरान पाया कि मानव ५५ प्रतिशत संचार अशाब्दिक, 38 उच्चारण से तथा शेष 7 प्रतिशत शब्दों में करता है। अशाब्दिक संचार के प्रमुख माध्यम निम्नप्रकार हैं :- 
(1) शारीरिक मुद्रा : यह अशाब्दिक संचार का सबसे महत्वपूर्ण माध्यम है। संचार प्रक्रिया के दौरान हाथ हिलाने, हाथों से संकेत करने, मुंह हिलाने, इधर-उधर चलने से पता चलता है कि संचारक कैसा महसूस कर रहा है? इसी प्रकार, चेहरा और आंखों के हावभाव से सुख-दु:ख, विश्वास-अविश्वास इत्यादि का संचार होता है, जिसकी व्याख्या प्रापक आसानी से कर लेता है।
(2) वेशभूषा : वेशभूषा भी अशाब्दिक संचार का माध्यम है। इससे सामने वाले की मन:स्थिति का पता चलता है। वेशभूषा से खुशी या गम की जानकारी मिलती है। कपड़ों के अलावा भी कुछ अन्य सामग्री (जैसे- आभूषण, सेंट, घड़ी, टोपी, जूते, चश्मा, मोबाइल इत्यादि) महत्वपूर्ण है। इनसे भी कुछ न कुछ संचार अवश्य होता हंै। हालांकि इससे क्या संदेश निकलेगा, यह अलग-अलग व्यक्ति के व्यवहार, विचार, पृष्ठभूमि पर निर्भर करता है। जैसे- नौजवानों का हेयर स्टाइल और कपड़ों की पसंद अलग-अलग होती है। इनमें कोई गंभीर प्रवृत्ति का होता है तो कोई बिंदास।  
(3) स्पर्श : यह भी अमौखिक संचार का महत्वपूर्ण माध्यम है। इसके उदाहरण समाज में अक्सर देखने को मिलते हैं। उदाहरणार्थ, भीड़ में आपने किसी को स्पर्श किया और वह आपको आगे जाने के लिए जगह दे देता है। आप चले भी जाते हैं, लेकिन आपने शब्दों में बोलकर जगह नहीं मांगी होती है। आपके स्पर्श करने से सामने वाला समझ जाता है कि आपको आगे जाना है। यह अमौखिक संचार है। इसी प्रकार स्नेहवश किसी के गाल को थपथपाना, दु:ख की घड़ी में किसी के सिर या कंधे पर हाथ रखना व बांह पकडऩा, दोस्तों से हाथ मिलाना इत्यादि अमौखिक संचार है। 
(4) निकटता : दूसरे व्यक्ति से हमारा सम्बन्ध कैसा है। यह निकटता के सिद्धांत से पता चलता है। उदाहरणार्थ, एक मीटर की दूरी पर आत्मीय, तीन मीटर की दूरी व्यक्तिगत् और इससे ज्यादा दूरी पर सामाजिक सम्बन्ध बनते हैं, जो मौखिक संचार के अंतर्गत् आते हंै।
(5) सम्पर्क : यदि दो लोग गर्मजोशी के साथ आपस में हाथ मिलाते हैं। इसके बाद गले मिलते हैं, तो इससे पता चलता है कि दोनों एक दूसरे से पूर्व परिचित हैं तथा दोनों के बीच अच्छे रिश्ते हैं। इसके विपरीत यदि दो लोग औपचारिक रूप से हाथ मिलाते हैं, तो इसका अर्थ है कि दोनों एक दूसरे को या तो अच्छी तरह से जानते नहीं हैं। यदि जानते हैं तो दोनों के बीच रिश्ते अच्छे नहीं हैं। 
(6) व्यक्तित्व : मानव का कद, रंग, बातचीत करने का तौर-तरीका, चलने की स्टाइल इत्यादि से काफी हद तक उसके व्यक्तित्व के बारे में जानकारी मिलती है। इस प्रकार का व्यक्तित्व अशाब्दिक संचार का माध्यम है।
(7) आंखों की गति : एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति से कितने देर तक आंखे मिलाकर वार्ताालॉप करता है। यह दोनों व्यक्तियों के रिश्तों के बारे में अमौखिक रूप से पता चलता है। 

अशाब्दिक संचार की विशेषताएं 
(1) संचारक और प्रापक भाषाई दृष्टि से एक दूसरे से अपरिचित होते हंै, तब भी प्रभावी होता है। 
(2) संदेश सम्प्रेषण में समय और शक्ति दोनों की बचत होती है। 
(3) इसे शब्दों में व्यक्त नहीं किया जा सकता है। 
(4) अशाब्दिक संचार से मौखिक संचार प्रभावी बनता है।

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